Ab ke aisa daur bana hai

अब के ऐसा दौर बना है
हर ग़म काबिले-गौर बना है 

उसके कल की पूछ मुझे, जो
आज तिरा सिरमौर बना है 

फिर से चाँद को रोटी कहकर
आँगन में दो कौर बना है 

बंद न कर दिल के दरवाज़े
ये हम सब का ठौर बना है 

इस्कूलों में आए जवानी
बचपन का ये तौर बना है 

तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर क़िस्सा कुछ और बना है 

झगड़ा है कैसा आख़िर, जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है
Gautam rajrishi

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