ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
एक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया
कोई जल्दी में, कोई देर से जाने वाला