चलते हो तो चमन को चलिये, कहते हैं कि बहाराँ है
पात हरे हैं, फूल खिले हैं, कम कम बाद-ओ-बाराँ है
रंग हवा से यूँ टपके है, जैसे शराब चुवाते हैं
आगे हो मैख़ाने के निकलो, ‘अहद-ए-बाद: गुसाराँ है
आगे हो मैख़ाने के निकलो, ‘अहद-ए-बाद: गुसाराँ है
इश्क़ के मैदाँ-दारों में भी, मरने का है वस्फ़ बहुत
यानी मुसीबत ऐसी उठाना, कार-ए-कार-गुज़ाराँ है
दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए
लोहु-पानी एक करे ये, इश्क़-ए-लाल:-अज़ाराँ है
कोहकन-ओ-मजनूँ की ख़ातिर, दश्त-ओ-कोह में हम न गए
‘इश्क़ में हमको मीर, निहायत पास-ए-इज़्ज़त-दाराँ है
-मीर तक़ी मीर