दाग़ दुनिया ने दिए जख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफे ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फलाने से फलाने से फलाने से मिले
ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले
माँ की आगोश में कल मौत की आगोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
इक नया जख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए किस्सा-ए-ग़म
उन के ख़ामोश लबों पर भी फ़साने से मिले
कैसे माने के उन्हें भूल गया तू ऐ ‘कैफ’
उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले
-कैफ़ भोपाली