Hamko mita sake ye zamane mein dam nahi

हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं 
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं 

बेफ़ायदा अलम नहीं, बेकार ग़म नहीं 
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये ने’आमत भी कम नहीं 

मेरी ज़ुबाँ पे शिकवा-ए-अह्ल-ए-सितम नहीं 
मुझको जगा दिया यही एहसान कम नहीं 

या रब! हुजूम-ए-दर्द को दे और वुस’अतें 
दामन तो क्या अभी मेरी आँखें भी नम नहीं 

ज़ाहिद कुछ और हो न हो मयख़ाने में मगर 
क्या कम ये है कि शिकवा-ए-दैर-ओ-हरम नहीं 

शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन 
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं 

मर्ग-ए-ज़िगर पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़ 
इक सानिहा सही मगर इतनी अहम नहीं

Jigar moradabadi

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