Hawa jab kisi ki kahani kahe hai

हवा जब किसी की कहानी कहे है
नये मौसमों की ज़ुबानी कहे है 

फ़साना लहर का जुड़ा है ज़मीं से
समन्दर मगर आसमानी कहे है 

कटी रात सारी तेरी करवटों में
कि ये सिलवटों की निशानी कहे है 

नई बात हो अब नये गीत छेड़ो
गज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है 

मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे
हुई जब से बेटी सयानी कहे है 

यहाँ ना गुज़ारा सियासत बिना अब
मेरे मुल्क की राजधानी कहे है 

“रिवाजों से हट कर नहीं चल सकोगे”
कि जड़ ये मेरी ख़ानदानी कहे है

Gautam rajrishi

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