Machal kar jab bhi aankhon se

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू 
सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(१) 

खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को 
चरागों से मज़ारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(२)
 
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है 
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(३) 

तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी 
मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(४)

Gulzar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *