Muddat mein fir taza mulaqaat ka aalam

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम 
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम 

अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम 
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम 

आरिज़ से ढलकते हुए शबनम के वो क़तरे 
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम 

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया 
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम

Jigar moradabadi

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