रू-ए- अनवर नहीं देखा जाता
देखें क्योंकर नहीं देखा जाता
रश्के-दुश्मन भी गवारा लेकिन
तुझको मुज़्तर नहीं देखा जाता
दिल में क्या ख़ाक उसे देख सके
जिसको बाहर नहीं देखा जाता
तौबा के बाद भी ख़ाली-ख़ाली
कोई साग़र नहीं देखा जाता
क्या शबे-वादा हुआ हूँ बेख़ुद
जानिबे-दर नही देखा जाता
मुख़्तसर ये है अब कि ‘दाग़’ का हाल
बन्दापरवर नहीं देखा जाता
Daag Dehalvi