हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं
ये कैसा रिश्ता हुआ इश्क में वफ़ा का भला
तमाम उम्र में दो चार छ: गिले भी नहीं
इस उम्र में भी कोई अच्छा लगता है लेकिन
दुआ-सलाम के मासूम सिलसिले भी नहीं
गुलज़ार
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं
ये कैसा रिश्ता हुआ इश्क में वफ़ा का भला
तमाम उम्र में दो चार छ: गिले भी नहीं
इस उम्र में भी कोई अच्छा लगता है लेकिन
दुआ-सलाम के मासूम सिलसिले भी नहीं
गुलज़ार
आज मौसम बहुत खुशनुमा है.. ,
क्या तुमने हवाओं को चूमा है…?
अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफ़र के हम है
रुख हवाओ का जिधर का है उधर के हम है
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ।