काश के कोई आकर सम्भाल ले मुझको बाँहो में,
धीरे धीरे ख़त्म हो रहा हूँ मैं भी दिसंबर की तरह
Tag: sambhalna
Jeene ki tamanna
पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी,
डगमगाना भी ज़रूरी है संभलने के लिए।
काश के कोई आकर सम्भाल ले मुझको बाँहो में,
धीरे धीरे ख़त्म हो रहा हूँ मैं भी दिसंबर की तरह
पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी,
डगमगाना भी ज़रूरी है संभलने के लिए।