Tu jab se alladin hua

तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरागे-जिन हुआ 

भूलूँ तुझे? ऐसा तो कुछ
होना न था, लेकिन हुआ 

पढ़-लिख हुए बेटे बड़े
हिस्से में घर गिन-गिन हुआ 

काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ 

झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ 

रूठा जो तू फिर तो ये घर
मानो झरोखे बिन हुआ 

आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढब कमसिन हुआ 

Gautam rajrishi

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