Tujhi se ibtda hai

तुझी से इब्तदा है तू ही इक दिन इंतहा होगा 
सदा-ए-साज़ होगी और न साज़-ए-बेसदा होगा 

हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा 
सब उस को देखते होंगे वो हमको देखता होगा 

सर-ए-महशर हम ऐसे आसियों का और क्या होगा 
दर-ए-जन्नत न वा होगा दर-ए-रहमत तो वा होगा 

जहन्नुम हो कि जन्नत जो भी होगा फ़ैसला होगा 
ये क्या कम है हमारा और उस का सामना होगा 

निगाह-ए-क़हर पर ही जान-ओ-दिल सब खोये बैठा है 
निगाह-ए-मेहर आशिक़ पर अगर होगी तो क्या होगा 

ये माना भेज देगा हम को महशर से जहन्नुम में 
मगर जो दिल पे गुज़रेगी वो दिल ही जानता होगा 

समझता क्या है तू दीवानगी-ए-इश्क़ को ज़ाहिद 
ये हो जायेंगे जिस जानिब उसी जानिबख़ुदा होगा 

“ज़िगर” का हाथ होगा हश्र में और दामन-ए-हज़रत 
शिकायत हो कि शिकवा जो भी होगा बरमला होगा

Jigar moradabadi

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