Wo din humko kitne suhane lagenge

वो दिन हमको कितने सुहाने लगेंगे,
तेरे दर पे जब आने जाने लगेंगे

कोई जब तुम्हें ध्यान से देख लेगा,
उसे चाँद सूरज पुराने लगेंगे

रहूं मैं मुहब्बत की इक बूँद बनकर,
तो सागर भी मुझमें नहाने लगेंगे

ये अपना मुकद्दर है आंधी चलेगी,
कि जब हम नशेमन बनाने लगेंगे

पता तो है मुझमे बसे हो कहीं पर
मगर ढूँढने में ज़माने लगेंगे

कहो फिर यकीं कौन किस पर करेगा,
अगर अपने ही, दिल दुखाने लगेंगे

बनोगे जो धरती के तुम चाँद-सूरज
तो सातों फलक सर झुकाने लगेंगे

मुहब्बत कि नज़रों से जो देख लोगे,
तो हम भी ‘कुँअर’ मुस्कुराने लगेंगे

– कुँअर बेचैन

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