Wo jo apni khabar de hai

वो जब अपनी ख़बर दे है
जहाँ भर का असर दे है

रगों में गश्त कुछ दिन से
कोई आठों पहर दे है

चुराकर कौन सूरज से
यूं चंदा को नज़र दे है

ये रातों की है नक्काशी
जो सुबहों में कलर दे है

कहाँ है ज़ख्म औ’ हाकिम
भला मरहम किधर दे है

ज़रा-सा मुस्कुरा कर वो
नयी मुझको उमर दे है

तुम्हारे हुस्न का रुतबा
मुहब्बत को हुनर दे है

Gautam rajrishi

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