उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
Month: December 2015
Wo chandni ka badan
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
कहा से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है
बशीर बद्र
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Wo chandni ka badan khushbuon ka saaya hai
Bahut aziz hamein hai magar paraya hai
Utar bhi aao kabhi aasman key zeene se
Tumhen khuda ne hamare liye banaya hai
Kahan se aai ye khushboo ye ghar ki khusboo hai
Is ajnabi ke andhere mein kaun aaya hai
Mahak rahi hai zamin chandni ke phoolon se
Khuda kisi ki mohabbat pe muskuraya hai
Use kisi ki mohabbat ka eitbar nahin
Use zamane ne shayad bahut sataya hai
Tamaam umar mera dam uske dhuen se ghuta
Wo ek chiragh tha maine use bujhaya hai
Bashir Badr
Dariya
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
Muhabbat ek khushbu hai
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता