Wo chandni ka badan

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

कहा से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है

महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

बशीर बद्र

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Wo chandni ka badan khushbuon ka saaya hai
Bahut aziz hamein hai magar paraya hai

Utar bhi aao kabhi aasman key zeene se
Tumhen khuda ne hamare liye banaya hai

Kahan se aai ye khushboo ye ghar ki khusboo hai
Is ajnabi ke andhere mein kaun aaya hai

Mahak rahi hai zamin chandni ke phoolon se
Khuda kisi ki mohabbat pe muskuraya hai

Use kisi ki mohabbat ka eitbar nahin
Use zamane ne shayad bahut sataya hai

Tamaam umar mera dam uske dhuen se ghuta
Wo ek chiragh tha maine use bujhaya hai

Bashir Badr

Dariya

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता