Agar talaash karu

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है

तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा

बशीर बद्र 

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Agar talaash karun koi mil hi jayega
Magar tumhari tarah kaun mujhko chahega
Tumhen zaroor koi chahaton se dekhega
Magar wo aankhen hamaari kahan se layega
Na jane kab tire dil par nayi si dastak ho
Makaan khali hua hai to koi ayega
Main apni raah mein deewar ban key baitha hun
Agar wo aaya to kis raaste se ayega
Tumhare saath ye mausam farishton jaisa hai

Tumhare baad ye mausam bahut sataayega

Bashir Badr 

 

Log toot jaate hain

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी

कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में

बशीर बद्र 

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Log toot jaate hain, ek ghar banaane mein
Log toot jaate hain, ek ghar banaane mein
Tum taras nahin khate, bastiyaan jalaane mein
Aur jaam tootenge, is sharaabkhaane mein
Mausmon ke aane mein, mausmon ke jane mein
Har dharhkate patthar ko, log dil samajhte hain
Umar beet jaati hain, dil ko dil banaane mein
Fakhtaa ki majboori, ye bhi kah nahin sakti
kaun saanp rakhta hain, uske aashiyane mein
Doosri koi ladki, zindgi mein aayegi

kitni der lagti hain, usko bhool jane mein

Bashir Badr

 

Naqsh fariyadi hai,

नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का

काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का

 

काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई, न पूछ

सुबह करना शाम का, लाना है जू-ए-शीर का

 

जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिये

सीन:-ए-शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का

 

आगही, दाम-ए-शुनीदन, जिस क़दर चाहे बिछाए

मुद्दआ़ ‘अ़न्क़ा है, अपने ‘आ़लम-ए-तक़रीर का

 

बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतिश-ज़ेर-ए-पा

मू-ए-आतिश-दीद़: है हल्क़: मिरी ज़ंजीर का

 

-मिर्ज़ा ग़ालिब