Har ek rooh main ek gham chhupa lage hai mujhe

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे 
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे 

जो आँसू में कभी रात भीग जाती है 
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे 

मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों में 
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे 

मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ 
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे 

मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह 
ये मेरा गाँओ तो पहचाना सा लगे है मुझे 

बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद 
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे

Jaan nisaar akhtar

Ham se bhaga na karo door ghazalo ki tarha

हमसे भागा न करो, दूर ग़ज़ालों की तरह
हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह 

खुद-ब-खुद नींद-सी आंखों में घुली जाती है
महकी-महकी है शब-ए-गम तेरे बालों की तरह 

तेरे बिन, रात के हाथों पे ये तारों के अयाग
खूबसूरत हैं मगर जहर के प्यालों की तरह 

और क्या उसमें जियादा कोई नर्मी बरतूं
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह 

गुनगुनाते हुए और आ कभी उन सीनों में
तेरी खातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह

तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे अबरू तिरे लब
अब भी मशहूर हैं दुनिया में मिसालों की तरह

हम से मायूस न हो ऐ शब-ए-दौराँ कि अभी
दिल में कुछ दर्द चमकते हैं उजालों की तरह

मुझसे नजरे तो मिलाओ कि हजारों चेहरे
मेरी आंखों में सुलगते हैं सवालों की तरह 

और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह

जुस्तजू ने किसी मंजिल पे ठहरने न दिया
हम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह 

जिन्दगी! जिसको तेरा प्यार मिला वो जाने 
हम तो नाकाम रहें, चाहने वालों की तरह।

Jaan nisaar akhtar

Fursat e kar faqat chaar ghadi hai yaaro

फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारों 
ये न सोचो के अभी उम्र पड़ी है यारों

अपने तारीक मकानों से तो बाहर झाँको 
ज़िन्दगी शम्मा लिये दर पे खड़ी है यारों 

उनके बिन जी के दिखा देंगे चलो यूँ ही सही 
बात इतनी सी है के ज़िद आन पड़ी है यारों

फ़ासला चंद क़दम का है मना लें चल कर 
सुबह आई है मगर दूर खड़ी है यारों 

किस की दहलीज़ पे ले जाके सजाऊँ इस को 
बीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारों 

जब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगे 
सिर्फ़ कहने के लिये बात बड़ी है यारों
Jaan nisaar akhtar

Achha hai un se koi takaza kiya na jaye

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुसवा किया न जाए 

हम हैं तेरा ख़याल है तेरा जमाल है 
इक पल भी अपने-आप को तन्हा किया न जाए 

उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम 
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए 

उनकी रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हमसे तो हर बात पे झगड़ा किया न जाए 

हर-चंद ए’तिबार में धोखे भी है मगर 
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए 

लहजा बना के बात करें उनके सामने 
हमसे तो इस तरह का तमाशा किया न जाए 

इनाम हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ 
जब तक सिफारिशों को इकट्ठा किया न जाए 

हर वक़्त हमसे पूछ न ग़म रोज़गार के 
हम से हर घूँट को कड़वा किया न जाए

Jaan nisaar akhtar