Duniya ne ham pe jab koi ilzam rakh diya

दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया
हमने मुक़ाबिल उसके तेरा नाम रख दिया

इक ख़ास हद पे आ गई जब तेरी बेरुख़ी
नाम उसका हमने गर्दिशे-अय्याम रख दिया

मैं लड़खड़ा रहा हूँ तुझे देख-देखकर
तूने तो मेरे सामने इक जाम रख दिया

कितना सितम-ज़रीफ है वो साहिब-ए-जमाल
उसने जला-जला के लबे-बाम रख दिया

इंसान और देखे बग़ैर उसको मान ले
इक ख़ौफ़ का बशर ने ख़ुदा नाम रख दिया

अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी
हमने तो दिल जला के सरे-आम रख दिया

क्या मस्लेहत-शनास था वो आदमी ‘क़तील’
मजबूरियों का जिसने वफ़ा नाम रख दिया

Qateel shifai

Dard se mera daman bhar de ya allah

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह

मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह

या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह

Qateel shifai

Charaag dil se jalao ki id ka din hai

चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है
तराने झूम के गाओ कि ईद का दिन है

ग़मों को दिल से भुलाओ कि ईद का दिन है
ख़ुशी से बज़्म सजाओ कि ईद का दिन है 

हुज़ूर उसकी करो अब सलामती की दुआ 
सर-ए-नमाज़ झुकाओ कि ईद का दिन है 

सभी मुराद हो पूरी हर एक सवाली की 
दुआ को हाथ उठाओ कि ईद का दिन है

Qateel shifai

Bechain baharon mein kya kya hai

बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है 
जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है 

कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया 
हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है 

तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने 
मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है 

कुछ और भी साँसें लेने पर मजबूर-सा मैं हो जाता हूँ 
जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की ख़ुश्बू आती है 

कुछ तू ही मुझे अब समझा दे ऐ कुफ़्र दुहाई है तेरी 
क्यूँ शेख़ के दामन से मुझको इमान की ख़ुश्बू आती है 

डरता हूँ कहीं इस आलम में जीने से न मुनकिर हो जाऊँ 
अहबाब की बातों से मुझको एहसान की ख़ुश्बू आती है 

Qateel shifai