Apne hothon par sajana chahta hoon

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ 
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ 

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर 
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ 

थक गया मैं करते-करते याद तुझको 
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा 
रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ 

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये 
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

Qateel shifai

Apne haatho ki lakeeron mein basa le mujhko

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको 
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको 

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी 
ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझको 

मैं समंदर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोताज़न भी 
कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको 

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी 
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको 

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ 
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको 

ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन 
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको 

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको 

मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे 
तू दबे पाँव कभी आ के चुरा ले मुझको 

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम 
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको 

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ “क़तील” 
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको 

Qateel shifai

Angdai par angdai leti hai raat judai ki

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की 
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की 

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में 
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की 

वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर 
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की 

उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया 
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की

Qateel shifai

Haath diya usne mere haath mein

हाथ दिया उसने मेरे हाथ में।
मैं तो वली बन गया एक रात मे॥

इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
तोहमतें बटती नहीं खैरात में॥

इश्क़ बुरी शै सही, पर दोस्तो।
दख्ल न दो तुम, मेरी हर बात में॥

हाथ में कागज़ की लिए छतरियाँ
घर से ना निकला करो बरसात में॥

रत बढ़ाया उसने न ‘क़तील’ इसलिए
फर्क था दोनों के खयालात में॥

Qateel shifai