Nigahon mein khumar aata hua mehsoos hota hai

निगाहों में ख़ुमार आता हुआ महसूस होता है
तसव्वुर जाम छलकाता हुआ महसूस होता है

ख़िरामे- नाज़ -और उनका ख़िरामे-नाज़ क्या कहना
ज़माना ठोकरें खाता हुआ महसूस होता है

ये एहसासे-जवानी को छुपाने की हसीं कोशिश
कोई अपने से शर्माता हुआ महसूस होता है

तसव्वुर एक ज़ेहनी जुस्तजू का नाम है शायद
दिल उनको ढूँढ कर लाता हुआ महसूस होता है

किसी की नुक़रई  पाज़ेब की झंकार के सदक़े
मुझे सारा जहाँ गाता हुआ महसूस होता है

‘क़तील’अब दिल की धड़कन बन गई है चाप क़दमों की
कोई मेरी तरफ़ आता हुआ महसूस होता है

Qateel shifai

Tumhari anjuman se uth ke deewane kahan jate

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते 
जो वाबस्ता हुए, तुमसे, वो अफ़साने कहाँ जाते

निकलकर दैरो-काबा से अगर मिलता न मैख़ाना 
तो ठुकराए हुए इंसाँ खुदा जाने कहाँ जाते 

तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाखाने की 
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते 

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी 
वगरना हम जमाने-भर को समझाने कहाँ जाते 

क़तील अपना मुकद्दर ग़म से बेगाना अगर होता 
तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते

Qateel shifai

Zindgi mein to sabhi pyar kiya karte hain

ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं 
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा 

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको 
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिये थोड़ी है 
इक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर 
मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी है 
तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान तुझे चाहूँगा 

अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये 
मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे 
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ 
मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे 
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा 

तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़ 
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये 
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको 
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बू आये 
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा

Qateel shifai

Yoon chup rehna theek nahi koi meethi baat karo

यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो

सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया 
रस में डूबे नग़्मे की अब तुम बरसात करो 

हिज्र की इक लम्बी मंज़िल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो 

मैं किरनों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखड़े का चाँद जलाओ रौशन रात करो 

प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार “क़तील” 
गली-गली तक़सीम न तुम अपने जज़बात करो 

Qateel shifai