Yon lage dost tera mujhse khafa ho jana

यों लगे दोस्त तेरा मुझसे ख़फ़ा हो जाना 
जिस तरह फूल से ख़ुश्बू का जुदा हो जाना

अहल-ए-दिल से ये तेरा तर्क-ए-त’अल्लुक़ 
वक़्त से पहले असीरों का रिहा हो जाना 

यों अगर हो तो जहाँ में कोई काफ़िर न रहे 
मो’अजुज़ा तेरे वादे का वफ़ा हो जाना 

ज़िन्दगी मैं भी चलूँगा तेरे पीछे-पीछे 
तू मेरे दोस्त का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो जाना 

जाने वो कौन सी कैफ़ियत-ए-ग़मख़्वारी है 
मेरे पीते ही “क़तील” उसको नशा हो जाना

Qateel shifai

Duniya se wafa karke sila dhund rahe hai

दुनिया से वफ़ा करके सिला ढूँढ रहे हैं
हम लोग भी नदाँ हैं ये क्या ढूँढ रहे हैं

कुछ देर ठहर जाईये बंदा-ए-इन्साफ़
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूँढ रहे हैं

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं

दुनिया की तमन्ना थी कभी हम को भी ‘फ़ाकिर’
अब ज़ख़्म-ए-तमन्ना की दवा ढूँढ रहे हैं

सुदर्शन फ़ाक़िर

Dhal gaya aaftaab e saaki

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी

या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी

आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी

सुदर्शन फ़ाकिर

Aadmi Aadmi ko kya dega

आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही ख़ुदा देगा

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिब है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा

ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

हमसे पूछो दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा

इश्क़ का ज़हर पी लिया “फ़ाकिर”
अब मसीहा भी क्या दवा देगा

सुदर्शन फ़ाक़िर