Dil pe aaye hue ilzaam se pehchaante hai

दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते हैं

आईना-दार-ए-मोहब्बत हूँ के अरबाब-ए-वफ़ा
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते हैं

बादा ओ जाम भी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते हैं

पौफटे क्यूँ मेरी पलकों पे सजाते हो उन्हें
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते हैं

Qateel shifai

Pyar ki rah mein aise bhi maqam aate hai

प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं |
सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं ||

उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम |
प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं ||

ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ |
उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते हैं ||

हम न चाहें तो कभी शाम के साए न ढलें |
हम तड़पे हैं तो सुबहों के सलाम आते हैं ||

कुव्वत-ए-दस्त-ए-तलब का नहीं जिन को इदराक |
तेरे दर से वही बे-नील मराम आते हैं ||

मुंह छुपा लेते हैं ग़म हज़रात-ए-नासेह की तरह |
जब भी मैखाने में रिंदान-ए-कराम आते हैं ||

हम पे हो जाएँ न कुछ और भी रातें भारी |
याद अक्सर वो हमें अब सर-ए-शाम आते हैं ||

छिन गए हम से जो हालात की राहों में क़तील |
उन हसीनों के हमें अब भी पयाम आते हैं ||

Qateel shifai

Dekhte jao magar kuchh bhi zuban se na kaho

देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो | 
मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो ||

लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे|
यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो||

गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है|
तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो||

ग़म कोई भी हो जवानी में मज़ा देता है|
ग़म-ए-जहाँ जो नहीं है ग़म-ए-दौरान ही सहो||

हो चुके प्यार में रुसवा सर-ए-बाज़ार क़तील|
अब कोई हम को नहीं फ़िक्र जो होना है सो हो||

Qateel shifai

Kiya ishq tha Jo ba ise ruswai ban gaya

किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया
यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया

बिन माँगे मिल गए मेरी आँखों को रतजगे
मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया

देखा जो उसका दस्त-ए-हिनाई करीब से
अहसास गूँजती हुई शहनाई बन गया

बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई
वो हादसा ही वजह-ए-शानासाई बन गया

करता रहा जो रोज़ मुझे उस से बदगुमाँ
वो शख्स भी अब उसका तमन्नाई बन गया

वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत न थी क़तील
फिर क्या हुआ अगर कोई हरजाई बन गया

Qateel shifai