ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

अपने साए से चौंक जाते हैं

उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा

रात भर बातें करते हैं तारे

रात काटे कोई किधर तन्हा

डूबने वाले पार जा उतरे

नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में

रात होती नहीं बसर तन्हा

हम ने दरवाज़े तक तो देखा था

फिर न जाने गए किधर तन्हा

गुलज़ार

उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश

गुलज़ार

उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश
इस बार मिली मुझसे तो ग़मगीन थी बारिश

कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश

रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर
उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश

ख़ामोशी थी और खिड़की पे इक रात रखी थी
बस एक सिसकती हुई तस्कीन थी बारिश

दर्द हल्का है साँस भारी है

दर्द हल्का है साँस भारी है 
जिए जाने की रस्म जारी है

आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है

क्या बताएं कि जां गयी कैसे
फिर से दोहराएं वो घड़ी कैसे

किसने रास्ते मे चांद रखा था
मुझको ठोकर लगी कैसे

वक़्त पे पांव कब रखा हमने
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे

आंख तो भर आयी थी पानी से
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे

हम तो अब याद भी नहीं करते
आप को हिचकी लग गई कैसे

गुलज़ार

हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं 

हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं 
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं

ये कैसा रिश्ता हुआ इश्क में वफ़ा का भला 
तमाम उम्र में दो चार छ: गिले भी नहीं 

इस उम्र में भी कोई अच्छा लगता है लेकिन
दुआ-सलाम के मासूम सिलसिले भी नहीं 

गुलज़ार