Aah ko chahiye ek umr asar hone tak

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग 
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!

आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक!

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक!

परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम 
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!

यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल 
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक!

गम-ए-हस्ती का “असद” कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक! 

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