Aankhon mein jal raha hai kyun

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ 
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुआँ 

चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ 

आँखों के पोंछने से लगा आँच का पता 
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ 

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं 
मेहमाँ ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ

Gulzar

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