Abhi jo komple futi hai chhote chhote beezo par

अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
कहानी कल लिखेंगी ये समय की दहलीज़ों पर

किताबों में हैं उलझे ऐसे अब कपड़े नए कोई
ज़रा ना मांगते बच्चे ये त्योहारों व तीज़ों पर

हैं देते खु्शबू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीज़ों पर

न पूछो दास्ताँ महलों में चिनवाई मुहब्बत की
लुटे हैं कितने तख़्तो-ताज यहाँशाही कनीज़ों पर

वो नज़दीकी थी तेरी या थी मौसम में ही कुछ गर्मी
तू ने जो हाल पूछा तो चढ़ा तप और मरीज़ों पर

लेगा ये वक़्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीज़ों पर

भला है ज़ोर कितना, देख, इन पतले-से धागों में
टिकी है मेरी दुनिया माँ की सब बाँधी तबीज़ों पर

– गौतम राजऋषि

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *