Achha hai un se koi takaza kiya na jaye

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुसवा किया न जाए 

हम हैं तेरा ख़याल है तेरा जमाल है 
इक पल भी अपने-आप को तन्हा किया न जाए 

उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम 
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए 

उनकी रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हमसे तो हर बात पे झगड़ा किया न जाए 

हर-चंद ए’तिबार में धोखे भी है मगर 
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए 

लहजा बना के बात करें उनके सामने 
हमसे तो इस तरह का तमाशा किया न जाए 

इनाम हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ 
जब तक सिफारिशों को इकट्ठा किया न जाए 

हर वक़्त हमसे पूछ न ग़म रोज़गार के 
हम से हर घूँट को कड़वा किया न जाए

Jaan nisaar akhtar

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