Khainchi labo ne aah ki sine pe aaya haath

खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास  मगर मुस्कुराया हाथ ।

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।

यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी, 
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

Ana kasmi

Khainchi labo ne aah ki sine pe aaya haath

खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास  मगर मुस्कुराया हाथ ।

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।

यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी, 
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

Ye maqame ishq hai kounsa ki mizaj sare badal gaye

ये मक़ामे इश्क़ है कौनसा, कि मिज़ाज सारे बदल गए
मैं इसे कहूँ भी तो क्या कहूँ, मिरे हाथ फूल से जल गए

तिरी बेरूख़ी की जनाब से, कई शेर यूँ भी अ़ता हुए
के ज़बाँ पे आने से पेशतर मिरी आँख ही में मचल गए

तिरा मैकदा भी अ़जीब है कि अलग यहाँ के उसूल हैं
कभी बे पिए ही बहक गए कई बार पी के सम्हल गए

सुनो ज़िन्दगी की ये शाम है ,यहाँ सिर्फ़ अपनों का काम है
जो दिए थे वक़्त पे जल उठे, थे जो आफ़ताब वो ढल गए

कई लोग ऐसे मिले मुझे, जिन्हें मैं कभी न समझ सका
बड़ी पारसाई की बात की, बड़ी सादगी से पिघल गए

ज़रा ऐसा करदे तू ऐ ख़ुदा, कि ज़बाँ वो मेरी समझ सकें
वो जो शेर उनके लिए कहे वही उनके सर से निकल गए

Usse kehna ki kamai ke na chakkar me rahe

उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रहे
दौर अच्छा नहीं बेहतर है कि वो घर में रहे

जब तराशे गए तब उनकी हक़ीक़त उभरी
वरना कुछ रूप तो सदियों किसी पत्थर में रहे 

दूरियाँ ऐसी कि दुनिया ने न देखीं न सुनीं
वो भी उससे जो मिरे घर के बराबर में रहे

वो ग़ज़ल है तो उसे छूने की ह़ाजत भी नहीं
इतना काफ़ी है मिरे शेर के पैकर में रहे

तेरे लिक्खे हुए ख़त भेज रहा हूँ तुझको
यूँ ही बेकार में क्यों दर्द तिरे सर में रहे

ज़िन्दगी इतना अगर दे तो ये काफ़ी है ’अना’
सर से चादर न हटे पाँव भी चादर में रहे

Ana kasmi