Saanwli si ek ladki

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की 
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है 
सुना है 
वो किसी लड़के से प्यार करती है 
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है 
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ 
बस उसी वक़्त जब वो आती है 
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है 
मुझे 
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे 
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर 
गली के मोड पे खडा हुआ सा 
एक पत्थर 
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख 
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ 
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं 
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं 
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे 
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे

Nida Fazli

Tumhari kabr

तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,

मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।

मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।

कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |

बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |

Nida Fazli

Jahanato ko kaha karb se farar mila

ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला 
जिसे निगाह मिली उसको इंतज़ार मिला

वो कोई राह का पत्थर हो या हसीं मंज़र 
जहाँ से रास्ता ठहरा वहीं मज़ार मिला

कोई पुकार रहा था खुली फ़िज़ाओं से 
नज़र उठाई तो चारो तरफ़ हिसार मिला

हर एक साँस न जाने थी जुस्तजू किसकी 
हर एक दयार मुसाफ़िर को बेदयार मिला

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई 
जो आदमी भी मिला बनके इश्तहार मिला

Nida Fazli

Ye zindgi

ये ज़िन्दगी 
आज जो तुम्हारे 
बदन की छोटी-बड़ी नसों में 
मचल रही है 
तुम्हारे पैरों से चल रही है 
तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से निकल रही है 
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढल रही है

ये ज़िन्दगी 
जाने कितनी सदियों से 
यूँ ही शक्लें 
बदल रही है

बदलती शक्लों 
बदलते जिस्मों में 
चलता-फिरता ये इक शरारा 
जो इस घड़ी 
नाम है तुम्हारा 
इसी से सारी चहल-पहल है 
इसी से रोशन है हर नज़ारा

सितारे तोड़ो या घर बसाओ 
क़लम उठाओ या सर झुकाओ

तुम्हारी आँखों की रोशनी तक 
है खेल सारा

ये खेल होगा नहीं दुबारा 
ये खेल होगा नहीं दुबारा

Nida Fazli