Har ghadi khud se ulajhna hai mukaddar mera

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा 
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा 

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से 
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा 

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे 
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा 

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे 
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा 

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर 
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा

Nida Fazli

Duniya jise kehte hai jadu ka khilona hai

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है 
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है

अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम 
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने 
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं 
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है

ये वक्त जो तेरा है, ये वक्त जो मेरा 
हर गाम पर पहरा है, फिर भी इसे खोना है

आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आंगन को 
आकाश की चादर है धरती का बिछौना है
Nida Fazli

Deewar-o-dar se utar ke parchhaiya bolti hai

दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं 
कोई नहीं बोलता जब तनहाइयाँ बोलती हैं

परदेस के रास्ते में लुटते कहाँ हैं मुसाफ़िर 
हर पेड़ कहता है क़िस्सा पुरवाईयाँ बोलती हैं

मौसम कहाँ मानता है तहज़ीब की बन्दिशों को 
जिस्मों से बाहर निकल के अंगड़ाइयाँ बोलती हैं

सुन ने की मोहलत मिले तो आवाज़ है पतझरों में 
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं

Nida Fazli

Din salike se uga raat thikane se rahi

दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही 
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही 

चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें 
ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही 

इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी 
रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही 

फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को 
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही 

शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत 
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही

Nida Fazli