Dekha hua sa kuch hai to socha hua sa kuch

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ 
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ

होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं 
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ

साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा 
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ

फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह 
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ

धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया 
और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ

Nida Fazli

Chand se fool se ya meri zuban se suniye

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए
हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए

सबको आता नहीं दुनिया को सता कर जीना 
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए

क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए 
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का 
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए

कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें 
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए

चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी 
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए

Nida Fazli

Badla na apne aap ko jo the vahi rahe

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे 
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे 

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम 
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे 

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी 
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे 

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो 
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

Nida Fazli

Apni marzi se kaha apne safar ke hum hai

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं 

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है 
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं 

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक 
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं 

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब 
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं 

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम 
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं

Nida Fazli