आँखों को मेरी चाँद सुनहरा दिखाई दे
सोकर उठूँ तो माँ का ही चेहरा दिखाई दे
कहती है मुसीबत कि तेरे पास क्या आऊँ
चारों तरफ दुआओं का पहरा दिखाई दे
कब तक करुँ मुज़ाहिरा सड़कों पे बैठकर
शासन मुझे यहाँ का तो बहरा दिखाई दे
बरसे नहीं बादल तो बरसने लगीं आँखें
फसलों पे अब किसानों को ख़तरा दिखाई दे
सींचा था जिस चमन को शहीदों ने लहू से
अपनों की ही वजह वो उजड़ा दिखाई दे
– सिराज फ़ैसल ख़ान