Jindgi tujhko jiya hai koi afsos nahi

ज़िंदगी तुझको जिया है कोई अफसोस नहीं
ज़हर खुद मैने पिया है कोई अफसोस नहीं

मैने मुजरिम को भी मुजरिम ना कहा दुनिया में
बस यही ज़ुर्म किया है कोई अफसोस नहीं

मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से
दिल के ज़ख़्मों को सीया है कोई अफसोस नहीं

अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिश ‘फाकिर’
अब कफ़न ओढ लिया है कोई अफसोस नहीं

Sudarshan Faakir

Patthar ke khuda, Patthar ke sanam

पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इन्सा पाए हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा-कर आए हैं

बुत-खाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क्या हालत है
हम लोग वहीं से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहें हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में गमों के साए हैं

होठों पे तबस्सुम हलक़ा सा
आँखों में नमी सी अए फाकिर
हम अहले-ए-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं

Sudarshan Faakir

Ye daulat bhi le lo ye shohrat bhi le lo

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

मुहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चहरे की झुरिर्यों में सदियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी

कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना वो गिर के सम्भलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफ़े
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी

कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरोंदे बनाना बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
न दुनिया का ग़म था न रिश्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िंदगानी

– सुदर्शन फ़ाकिर

agar ham kahen aur wo muskura de

अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें 
हम उनके लिए ज़िंदगानी लुटा दें 

हर एक मोड़ पर हम ग़मों को सज़ा दें 
चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें 

अगर ख़ुद को भूले तो, कुछ भी न भूले 
कि चाहत में उनकी, ख़ुदा को भुला दें 

कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाये 
वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें 

क़यामत के दीवाने कहते हैं हमसे 
चलो उनके चहरे से पर्दा हटा दें 

सज़ा दें, सिला दें, बना दें, मिटा दें 
मगर वो कोई फ़ैसला तो सुना दें
Sudarshan faakir