Sapne anek the to miley swapnfal anek

सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक,
राजा अनेक, वैसे ही उनके महल अनेक। 

यूँ तो समय-समुद्र में पल यानी एक बूंद, 
दिन, माह, साल रचते रहे मिलके पल अनेक। 

जो लोग थे जटिल, वो गए हैं जटिल के पास 
मिल ही गए सरल को हमेशा सरल अनेक। 

झगडे हैं नायिका को रिझाने की होड के, 
नायक के आसपास ही रहते हैं खल अनेक। 

बिखरे तो मिल न पाएगी सत्ता की सुन्दरी, 
संयुक्त रहके करते रहे राज दल अनेक। 

लगता था-इससे आगे कोई रास्ता नहीं, 
कोशिश के बाद निकले अनायास हल अनेक। 

लाखों में कोई एक ही चमका है सूर्य-सा 
कहने को कहने वाले मिलेंगे ग़ज़ल अनेक।

zaheer quraishi

Aankhon ki kor ka bada hissa taral mila

आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला,
रोने के बाद भी, मेरी आँखों में जल मिला। 

उपयोग के लिए उन्हें झुग्गी भी चाहिए, 
झुग्गी के आसपास ही उनका महल मिला। 

आश्वस्त हो गए थे वो सपने को देख कर, 
सपने से ठीक उल्टा मगर स्वप्न-फल मिला। 

इक्कीसवीं सदी में ये लगता नहीं अजीब, 
नायक की भूमिका में लगातार खल मिला। 

पूछा गया था प्रश्न पहेली की शक्ल म, 
लेकिन, कठिन सवाल का उत्तर सरल मिला। 

उसको भी कैद कर न सकी कैमरे की आँख, 
जीवन में चैन का जो हमें एक पल मिला। 

ऐसे भी दृश्य देखने पडते हैं आजकल, 
कीचड की कालिमा में नहाता कमल मिला।

Zaheer quraishi

Unhe dekha gaya khilte kamal tak

उन्हें देखा गया खिलते कमल तक,
कोई झाँका नहीं झीलों के तल तक। 

तो परसों, फिर न उसकी राह तकना, 
जो भूला आज का, लौटा न कल तक। 

न जाने, कब समन्दर आ गए हैं, 
हमारी अश्रु-धाराओं के जल तक। 

सियासत में उन्हीं की पूछ है अब, 
नहीं सीमित रहे जो एक दल तक। 

यही तो टीस है मन में लता के, 
हुई पुष्पित, मगर, पहुँची न फल तक। 

हजारों कलयुगी शंकर हैं ऐसे- 
पचाना जानते हैं जो गरल तक। 

जो बारम्बार विश्लेषण करेगा, 
पहुँच ही जाएगा वो ठोस हल तक।

Zaheer quraishi

Hamare bhay pe pabandi lagate hai

हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं 
अंधेरे में भी जुगनू मुस्कुराते हैं 

बहुत कम लोग कर पाते हैं ये साहस 
चतुर चेहरों को आईना दिखाते हैं 

जो उड़ना चाहते हैं उड़ नहीं पाते 
वो जी भर कर पतंगों को उड़ाते हैं 

नहीं माना निकष हमने उन्हें अब तक 
मगर वो रोज़ हमको आज़माते हैं 

उन्हें भी नाच कर दिखलाना पड़ता है 
जो दुनिया भर के लोगों को नचाते हैं 

बहुत से पट कभी खुलते नहीं देखे 
यूँ उनको लोग अक्सर खटखटाते हैं 

हमें वो नींद में सोने नहीं देते 
हमारे स्वप्न भी हम को जगाते हैं

Zaheer quraishi