ज़िंदगी अपनी जब इस शल्क से गुज़री ‘ग़ालिब’
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
Mirza Ghalib
ज़िंदगी अपनी जब इस शल्क से गुज़री ‘ग़ालिब’
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
Mirza Ghalib
बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
“कर लेता हूँ बर्दाश्त तेरा हर दर्द इसी आस के साथ..
की खुदा नूर भी बरसाता है, आज़माइशों के बाद”.!!!
और भी बनती लकीरें दर्द की
शुक्र है खुदा तेरा जो हाथ छोटे दिए !!