ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी
जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी
सुदर्शन फ़ाकिर