Faraz ab koi souda koi junun bhi nahi

“फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं 
मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं 

लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला 
मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं 

मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो 
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं 

“फ़राज़” जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है 
तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं
Ahmad faraz

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