ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
रोयेंगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आयेंगे
कह देना समंदर से हम ओस के मोती है
दरया कि तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धुप के छप्पर हों या छाओं कि दीवारें
अब जो भी उठाएंगे मिल जुल के उठाएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमे देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएंगे
बशीर बद्र
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Ghazlon ka hunar apni aankhon ko sikhayenge
Royenge bahut lekin aansu nahin ayenge
Kah dena samandar se ham os ke moti hain
Darya ki tarah tujh se milne nahin ayenge
Wo dhoop key chhappar hon ya chhaon ki deewaren
Ab jo bhi uthayenge mil jul ke uthayenge
Jab saath na de koi aawaz hamein dena
Ham phool sahi lekin patthar bhi uthayenge
Bashir Badr