Halaat se khouf kha raha hoon

हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
शीशे के महल बना रहा हूँ

सीने में मेरे है मोम का दिल
सूरज से बदन छुपा रहा हूँ

महरूम-ए-नज़र है जो ज़माना
आईना उसे दिखा रहा हूँ

अहबाब को दे रहा हूँ धोका
चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ

दरिया-ए-फ़ुरात है ये दुनिया
प्यासा ही पलट कर जा रहा हूँ

है शहर में क़हत पत्थरों का
जज़्बात के ज़ख़्म खा रहा हूँ

मुमकिन है जवाब दे उदासी
दर अपना ही खटखटा रहा हूँ

आया न ‘क़तील’ दोस्त कोई
सायों को गले लगा रहा हूँ

Qateel shifai

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