Har ek rooh main ek gham chhupa lage hai mujhe

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे 
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे 

जो आँसू में कभी रात भीग जाती है 
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे 

मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों में 
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे 

मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ 
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे 

मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह 
ये मेरा गाँओ तो पहचाना सा लगे है मुझे 

बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद 
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे

Jaan nisaar akhtar

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