ज़िंदगी तुझको जिया है कोई अफसोस नहीं
ज़हर खुद मैने पिया है कोई अफसोस नहीं
मैने मुजरिम को भी मुजरिम ना कहा दुनिया में
बस यही ज़ुर्म किया है कोई अफसोस नहीं
मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से
दिल के ज़ख़्मों को सीया है कोई अफसोस नहीं
अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिश ‘फाकिर’
अब कफ़न ओढ लिया है कोई अफसोस नहीं
Sudarshan Faakir