Jo bhi guncha tere hothon par khila karta hai

जो भी गुंचा तेरे होठों पर खिला करता है
वो मेरी तंगी-ए-दामाँ का गिला करता है

देर से आज मेरा सर है तेरे ज़ानों पर
ये वो रुत्बा है जो शाहों को मिला करता है 

मैं तो बैठा हूँ दबाये हुये तूफ़ानों को 
तू मेरे दिल के धड़कने का गिला करता है 

रात यों चाँद को देखा है नदी में रक्साँ 
जैसे झूमर तेरे माथे पे हिला करता है 

कौन काफ़िर तुझे इल्ज़ाम-ए-तग़ाफ़ुल देगा 
जो भी करता है मुहब्बत का गिला करता है

Qateel shifai

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