मेरी आँखों को यह सब कौन बताने देगा
ख़्वाब जिसके हैं वहीं नींद न आने देगा
उसने यूँ बाँध लिया खुद को नये रिशतों में
जैसे मुझ पर कोई इलज़ाम न आने देगा
सब अंधेरे से कोई वादा किये बैठ हैं
कौन ऐसे में मुझे शमा जलाने देगा
भीगती झील, कमल, बाग महक, सन्नाटा,
यह मेरा गाँव, मुझे शहर न जाने देगा
वह भी आँखों में कई ख़्वाब लिये बैठा है
यह तसव्वुर ही कभी नींद न आने देगा
कल की बातें न करो, मुझ से कोई अहद न लो
वक़्त बदलेगा तो कुछ याद न आने देगा
अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे “वसीम”
कौन माज़ी की तरफ लौट के जाने देगा
– वसीम बरेलवी