सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं
ज़िन्दगी को भी सिला* कहते हैं कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं
फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं
चंद मासूम से पत्तों का लहू है “फ़ाकिर”
जिसको महबूब के हाथों की हिना* कहते हैं
* सिला – इनाम, उपहार
* हिना – मेहंदी
सुदर्शन फ़ाकिर
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Samne hai jo use log bura kehte hain
Jisko dekha hi nahin usko khuda kehte hai
Zindagai ko bhi sila kahte hai kahne wale
Jeene wale to gunahon ki saza kehte hain
Faasle umar ke kuchh aur badha deti hai
Jane kyun log use phir bhi dawa kehte hai
Chand masoom se patton ka lahoo hai Faakir
Jisko mahboob ke haathon ki hina kehte hain
Sudarshan Faakir