गुलज़ार
उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश
इस बार मिली मुझसे तो ग़मगीन थी बारिश
कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश
रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर
उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश
ख़ामोशी थी और खिड़की पे इक रात रखी थी
बस एक सिसकती हुई तस्कीन थी बारिश