दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
क्या बताएं कि जां गयी कैसे
फिर से दोहराएं वो घड़ी कैसे
किसने रास्ते मे चांद रखा था
मुझको ठोकर लगी कैसे
वक़्त पे पांव कब रखा हमने
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे
आंख तो भर आयी थी पानी से
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे
हम तो अब याद भी नहीं करते
आप को हिचकी लग गई कैसे
गुलज़ार