किसी रंजिश को हवा दो

सुदर्शन फ़ाकिर

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी
फ़ासले और बड़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है ‘फ़ाकिर’
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

Dariya

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता