कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है
क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे
ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।
कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है
क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे
ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।
तू रूठी रूठी सी लगती है, कोई तरकीब बता मनाने की
मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूं, तू क़ीमत तो बता मुस्कुराने की