एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी

एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी

दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी

गुलज़ार

उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश

गुलज़ार

उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश
इस बार मिली मुझसे तो ग़मगीन थी बारिश

कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश

रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर
उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश

ख़ामोशी थी और खिड़की पे इक रात रखी थी
बस एक सिसकती हुई तस्कीन थी बारिश